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स्वामी सत्य दर्शन (महेश गोस्वामी)

कच्छ मांडवी के वतनी है, जंहा के प्रसिद्ध विजय विलास पेलेस को सद्गुरु ओशो ने अपने नए आश्रम के लिए पसंद किया था | सन १९८२ में ओशो के मांडवी आगमन को रोकने के लिए भरपूर विरोध किया एवं बहोत बड़ी विरोध प्रदर्शन रेली में आगेवानी भी ली | बादमें सन १९८४ में ओशो से प्रेम हुआ और सन १९८८ में सन्यस्त भी हुए |

१२ साल गुजरात सरकार के सचिवालय में मुख्यमंत्री एवं अन्य मंत्रालय में अंगत सचिव के तौर पर कार्यरत रहे और वंहा गांधीनगर में भी ओशोके ध्यान प्रयोग, शिविर और अन्य गतिविधिओ में अग्रेसर रहे | बाद में सन २००२ में वापिस कच्छ भुज आये और पुर्णतः ओशो के कार्यमे लग गए | फ्रेंड्स ऑफ़ ओशो – कच्छ का एक प्यारा ग्रुप का निर्माण किया और कच्छ में पुनः ओशो कार्य को बढ़ावा दिया |

उत्सव, शिविर और ग्रुप मेडीटेसन के आयोजन और संचालन के पश्चाद ” ओशो सेमिनार ” के अविष्कार से ओशो प्रेमियों और सन्यासीओ को एक नए ढंग से ऑडियो-वीडियो और कम्पूटर टेक्नोलॉजी के माध्यम से ओशो से परिचित करवाया, बाद में यह प्रयोग बहोत प्रसिद्ध और कारगत साबित हुआ |

संगीत, साहित्य, नाट्य-कला, और कम्पूटर में विशेष रूचि के कारन ओशो से जुड़े विविध कार्यो में सर्जन होता गया | उपन्यास, लघु कथाए, विविध समाचार पत्रों में ओशो के लेख एवं काव्य-कीर्तन की रचना, ओशो के चुने गए प्रवचनों कि ऑडियो सी.डी. की श्रुंखला, मृत्योर्मा अमृतं गमय और ओशो पर आधारित हिंदी फिल्म : “ओशो महासागर की पुकार” का निर्माण जैसे अनेक नूतन रचनात्मक कार्य होते गए |

अलग अलग जगह पर ओशो उत्सव, शिविर एवं ओशो सेमिनार का आयोजन और संचालन चल रहा है | शिक्षण, साहित्य, संगीत और अध्यात्म से जुडी विविध संस्था, कोलेज, यूनिवर्सिटी में अध्यात्मिक विषयो पर लेकचर एवं वार्तालाप होता रहेता है | समाचार पत्रों में अध्यात्म और ओशो विषयक लेख प्रसिद्ध होते रहेते है | हाल में सरकारी सेवाओं में से स्वैच्छिकनिवृत होके कच्छ की सुप्रसिद्ध संस्था श्रुजन संचालित भारतके सबसे बडे और आधुनिक एवं आंतरराष्ट्रीय कक्षा के हेंडीक्राफ्ट म्यूज़ियममें गेलेरी, पी.आर. और इवेन्ट्स इन्चार्ज की सेवाएं प्रदान कर रहे है |

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